केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया गया है. इस संबंध में राष्ट्रपति भवन की ओर से बयान जारी कर जानकारी दी गई,केंद्र के इस ऐलान के बाद बिहार की सियासत सुर्खियों में आ गई है.
Karpuri Thakur कर्पूरी ठाकुर की बुधवार को होने वाली 100वीं जन्म जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया है.आप को बात दे की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी। इस ऐलान के बाद जेडीयू ने मोदी सरकार का आभार जताया है.
प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने X (ट्विटर ) पर यह जानकारी साझा किया और लिखा-
“मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है। यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी X (ट्विटर)
आइए जाने Karpuri Thakur के बारे मे
लंबे अरसे बाद मिला “तपस्या का फल”
कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि “हमें 36 साल की तपस्या का फल मिला है” . मैं अपने परिवार और बिहार के 15 करोड़ो लोगों की तरफ से सरकार को धन्यवाद देना चाहता हूं.
जानिए कौन थे सबके चहेते नेता कर्पूरी ठाकुर ?
कर्पूरी ठाकुर का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. पटना से 1940 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की और उसी समय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे, कर्पूरी ठाकुर ने आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर रहना पसंद किया. इसके बाद उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और 1942 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया , जिसके वजह से इन्हे जेल भी जाना पड़ा।
जब साल 1945 में जेल से बाहर आए तो उसके बाद कर्पूरी ठाकुर धीरे-धीरे समाजवादी आंदोलन का चेहरा बन गए, जिसका मकसद था की अंग्रेजों से आजादी के साथ-साथ समाज के भीतर पनपे जातीय व सामाजिक भेदभाव को दूर करने का था ताकि दलित, पिछड़े और वंचित को भी एक सम्मान की जिंदगी जीने का हक मिल सके.
कर्पूरी ठाकुर जी को 1952 में लोगों ने अपना विधायक के रूप मे चुना
कर्पूरी ठाकुर 1952 में ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर जीतकर विधायक बने थे. 1967 के बिहार विधानसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी बड़ी ताकत बन कर उभरी थी, जिसका नतीजा था कि बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी.
महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने तो कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बने और उन्हें शिक्षा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था। कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा मंत्री रहते हुए छात्रों की फीस खत्म कर दी थी और अंग्रेजी की अनिवार्यता भी खत्म कर दी थी। कुछ समय बाद बिहार की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बन गए।
कर्पूरी ठाकुर जी ने उर्दू को राज्य भाषा का दर्जा दिया
जब कर्पूरी ठाकुरमुख्यमंत्री थे तब वो छह महीने तक सत्ता में रहे, उन्होंने उन खेतों पर मालगुजारी खत्म कर दी, जिनसे किसानों को कोई मुनाफा नहीं होता था, साथ ही 5 एकड़ से कम जोत पर मालगुजारी खत्म कर दी गई
और साथ ही उर्दू को राज्य की भाषा का दर्जा दे दिया. इसके बाद उनकी राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और कर्पूरी ठाकुर बिहार की सियासत में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा बन गए.
आपको ज्ञात हो उन्होंने मंडल आंदोलन से भी पहले मुख्यमंत्री रहते हुए पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण दिया था, लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे।।।
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